राम बनाम
हनुमान – एक अद्भुत युद्ध
बहुत समय पहले की बा त है। यह कोई आम दिन नहीं था। आज कुछ अलग होने वाला था। भगवान राम और उनके सबसे प्रिय भक्त हनुमान के बीच एक गहरा मतभेद हो गया था। दोनों के विचार अलग हो गए थे — एक तरफ राम धर्म के रास्ते पर चल रहे थे, तो दूसरी तरफ हनुमान भक्ति के मार्ग पर अडिग थे।
यह मतभेद इतना बढ़ गया कि अब दोनों आमने-सामने खड़े थे, एक युद्धभूमि में।
चारों ओर शांति थी, लेकिन उस शांति में एक तूफान छुपा था।शुरुआत: मतभेद का कारण
यह सब शुरू हुआ जब एक राक्षसी कन्या पर अन्याय हुआ। वह निर्दोष थी, लेकिन उसके कुल के कारण उसे दंड दिया गया। राम ने निर्णय धर्म के आधार पर लिया, पर हनुमान को यह न्याय नहीं लगा। उन्होंने विरोध किया।
हनुमान ने राम से कहा, "प्रभु, यह अन्याय है। आपने जिसे सजा दी, वह निर्दोष है।"
राम ने शांत स्वर में उत्तर दिया, "हनुमान, धर्म में भावनाओं की नहीं, मर्यादा की भूमिका होती है। अगर मैंने यह निर्णय न लिया, तो आने वाली पीढ़ियाँ अनुशासन भूल जाएँगी।"
हनुमान ने सिर झुकाया, लेकिन मन में हलचल थी। वह कुछ भी कर सकते थे अपने प्रभु के लिए, लेकिन जब न्याय की बात आई, तो वो चुप नहीं रह सके।
संकट गहराता है
कुछ दिन बीते। हनुमान ने उस कन्या को बचा लिया और राम के आदेश की अवहेलना की। राम को यह स्वीकार नहीं हुआ। उन्होंने हनुमान को बुलाकर कहा, "तूने मेरी आज्ञा का उल्लंघन किया है, अब तू अपराधी है।"
हनुमान ने सिर ऊँचा किया और कहा, "अगर भक्ति के मार्ग में कभी अपने आराध्य का भी विरोध करना पड़े, तो वह भी स्वीकार है।"
यह सुनकर राम ने दुख के साथ कहा, "तो फिर इस संघर्ष का निर्णय युद्ध से होगा।"
युद्ध का प्रारंभ
एक विस्तृत मैदान में, जहाँ दूर-दूर तक कोई नहीं था, राम और हनुमान आमने-सामने खड़े थे। आकाश में बादल घिर आए। हवा में गरज थी।
राम ने अपना धनुष उठाया। हनुमान ने अपनी गदा कसकर पकड़ी।
राम बोले, "एक बार और सोच ले हनुमान, तू मेरा प्रिय है।"
हनुमान बोले, "प्रभु, मैं जानता हूँ कि मैं आपसे नहीं जीत सकता, लेकिन मैं अन्याय के सामने झुक नहीं सकता।"
राम ने अग्निबाण चलाया। वह बाण हवा को चीरता हुआ हनुमान की ओर आया। हनुमान ने विशाल छलांग लगाई और गदा से बाण को तोड़ दिया। विस्फोट हुआ, धरती कांप उठी।
प्रकृति का कोप
जैसे-जैसे युद्ध बढ़ा, आकाश काला पड़ने लगा। बिजली चमकने लगी। जंगल के पशु भागने लगे। पेड़ उखड़ने लगे।
हनुमान राम की ओर दौड़े, गदा उठाकर। राम ने अपना तलवार निकाला और दोनों में घमासान युद्ध शुरू हो गया।
गदा और तलवार की टक्कर से आग की चिंगारियाँ निकल रही थीं। जमीन पर गड्ढे बन गए। राम की आँखों में तेज था, हनुमान की आँखों में आँसू।
हनुमान बोले, "मैं आपसे युद्ध नहीं करना चाहता, लेकिन अन्याय के विरुद्ध खड़ा होना भी आपकी ही शिक्षा है।"
राम बोले, "धर्म और मर्यादा के बिना समाज नहीं चल सकता।"
युद्ध का चरम बिंदु
अब राम ने एक विशेष बाण निकाला, जिसे 'प्राणहर' कहा जाता है। यह बाण जिस पर भी चले, वह बच नहीं सकता।
हनुमान मुस्कराए, आँखे बंद की और बोले, "मारिए प्रभु, अगर मेरा प्राण ही न्याय के काम आ जाए, तो वह भी सौभाग्य है।"
राम ने बाण चलाया। वह सीधा हनुमान के हृदय की ओर आया... और अचानक वहीं रुक गया।
राम चौंक गए।
हनुमान की आँखें बंद थीं, और होंठों पर राम का नाम था। बाण उनके सीने से एक इंच पहले रुक गया और ज़मीन पर गिर गया।
राम दौड़कर हनुमान के पास आए और उन्हें गले से लगा लिया। दोनों की आँखों से आँसू बह रहे थे।
अंत की ओर – समझौता और प्रेम
राम बोले, "हनुमान, तूने मुझे सिखाया कि भक्ति बिना प्रश्न के नहीं होनी चाहिए। सच्चा भक्त वही है जो जरूरत पड़ने पर प्रश्न करे।"
हनुमान बोले, "प्रभु, आपने मुझे सिखाया कि धर्म की मर्यादा भी ज़रूरी है। मैं भावुक होकर भूल गया कि हर निर्णय आसान नहीं होता।"
दोनों एक-दूसरे को गले लगाए रहे। आकाश साफ हो गया। फूल बरसने लगे। हवा में राम नाम गूंजने लगा।
निष्कर्ष:
इस कहानी से यह सीख मिलती है कि जब दो महान शक्तियाँ आमने-सामने हों, तो निर्णय तलवार से नहीं, संवाद से होना चाहिए। भक्ति और धर्म एक-दूसरे के पूरक हैं, विरोधी नहीं।
राम और हनुमान का यह युद्ध बाहरी नहीं था, यह एक आंतरिक टकराव था —
नियम बनाम भावना का। और अंत में, भावना की शक्ति ने नियम को नम्र बना दिया।
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